रेल का सफर जब
अपने मुकाम पर पहुँचा तो
मैं रेल की दोनों पत्त्रिओं
के बीचों बीच आ गया ,
कुछ देर चलता रहा , चलता रहा
फिर गौर से देखा मैंने ,
वो दूर ........ बहुत दूर
जहाँ आसमान धरती से मिल रहा है
वहीं जहाँ दोनों दिशाएँ भी
आपस में मिल रही हैं ,
वहीं पर दोनों
रेल की पत्रिआं भी तो मिल रही हैं।
तुम भी पास आओ और देखो ,
बस यहीं से देखना
रेल की दोनों पत्त्रिओं का मिलन ।
Bauble recited this poem to me. It is GOOD
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