Wednesday, December 30, 2009

तुम्हारा एहसास


कहने को तुम मेरे पास बैठी हो ,
पर तुम्हारा एहसास पल् पल्
मेरे अंदर दम तोड़ रहा है ,
एक दुसरे पर था जो हमें ,
वो विशवास अब साथ छोड़ रहा है ,
गलत फ़हमी हमारे दरम्यान
गहरी खाई खोद रही है ,
तुम्हारी बेरुखी हमारे दिलों के दरम्यान
मीलों की दूरी पैदा कर रही है ,
कहने को तुम मेरे पास बैठी हो,
पर तुम्हारा एहसास पल् पल्
मेरे अंदर दम तोड़ रहा है,
तुम्हे मिलने की चाहत दिल के
किस्सी कोने में दुबक रही है ,
रह रह जो आती थी तेरी याद ,
कहीं छुप कर बैठी सुबक रही है
कहने को तुम मेरे पास बैठी हो ,
पर तुम्हारा एहसास पल् पल् ,
मेरे अंदर दम तोड़ रहा है ,
नज़रों से नज़र मिला कर एक बार ,
कह दो सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा ,
आँखों से निकला एक एक आंसू ,
सब गिले शिकवों को धो जाएगा ,
तुम्हारी कसम तुम्हारा एहसास ,
मेरे अंदर कभी दम नहीं तोड़ेगा ।

Thursday, November 26, 2009

नादान दिल

छोड़ मेरे नादान दिल अब,

फिर हो के आबाद क्या करना हैं,

जिसने भुला दिया है तुझको,

उसी को याद क्या करना है,

जो कल नही आई, आज भी नही आएगी,

झूठे वादों का ऐतबार क्या करना है,

ढूंढ लिया है मीत नया उसने,

अब तेर प्यार क्या करना है,

फेर ली है निगाहें तो उसके लिए,

एक आंसू भी बरबाद क्या करना है,

नहीं उसे तुझ से प्यार तो छोड़,

बार बार फ़रियाद क्या करना है।

Thursday, November 19, 2009

बुझ गया है दीप



बुझ गया है दीप अब दिल को जलाओ,

सिसकिआं बीता समय लेता ही रहेगा,

धमकिया संसार सदा देता ही रहेगा,

स्नेह की बूँदें ज़रा इस पर गिराओ,

बुझ गया है दीप अब दिल को जलाओ,

पग तिमिर को भेद बढ़ता ही रहेगा,

प्रलय की आंधी से लड़ता ही रहेगा,

व्यथित मन को ज़रा ढाढस बंधाओ,

बुझ गया है दीप अब दिल को जलाओ,

आंखों में पानी तो आता ही रहेगा,

हार मोतियों का सजाता ही रहेगा,

मूर्ति बन जाओ, हृदय मन्दिर सजाओ,

बुझ गया है दीप अब दिल को जलाओ।

Wednesday, November 18, 2009

टूटता दिल




डूबती कश्ती को एक तिनके का सहारा काफी नहीं ,

टूटते दिल को तेरी इक याद का सहारा काफी नहीं,

एक तरफ़ा प्यार कभी परवान नहीं चढ़ा करता ,

दरया-ऐ-इश्क को एक किनारे का सहारा काफी नहीं,

तुम रहने देना मैं अपनी लाश ख़ुद ही जला लूँगा ,

मेरे जीने के लिए तेरे झूठे वादे का सहारा काफी नहीं ।

Saturday, November 7, 2009

वफ़ा मर गई है



तुमने मुझे बुलाया तो होता,

सुना है तुम्हारी वफ़ा मर गई है,

न मातम किया, न आँसू बहाए

न अर्थी सजायी, हमदम बुलाये ,

न नहलाया , न कफ़न पहनाया,

न दुशाला चढाया , न कन्धा लगाया ,

तुमने मुझे बुलाया तो होता ,

सुना है तुम्हारी वफ़ा मर गई है,

न चिता बनाई , न अग्नि दिखाई ,

न चौथा किया , न अस्तिआं बहाई ,

न पंडित बुलाया , न किर्या कराई।

तुमने मुझे बुलाया तो होता ,

सुना है तुम्हारी वफ़ा मुझे मालूम है

मुझे मालूम है तुमने क्या किया है ,

अपनी वफ़ा को दिल में ही दफना दिया है,

इक दिन देखना इक धुंआ सा उठेगा,

तुम्हारे दिल में मेरा प्यार फिर जी उठेगा

तुमने मुझे बुलाया तो होता,

सुना है तुम्हारी वफ़ा मर गई है




Saturday, October 10, 2009

प्यार का फूल है



खता करे गर कोई तो, सज़ा मिलना उसूल है ,

मेरी खता की कोई सज़ा दो , मुझे कबूल है,

तुम न बुलाओगी तो, बोलूँगा मैं तुमसे,

ऐसा सोचती हो अगर, ये तुम्हारी भूल है,

कुछ तल्खिओं से प्यार मैला नहीं होता,

पोंछ दो ख्यालों से, ये बस वक्त की धूल है ,

सींचो तुम इसे अपनी मुस्कराहट से तो ये ,

फिर खिल उठेगा, ये प्यार का फूल है ।



Tuesday, September 29, 2009

बाँध लूँगा तुम्हे



तुम तब भी चली गई थी मुझे तनहा छोड़ कर ,

और कई दिनों तक बेचैन कर गई थी,

यूँ लगता था की सदीआं बीत गई है,

वक्त थम गया है, साँसें रुक गई हैं ,

तुम आज भी जा रही हो मुझे तनहा छोड़ कर ,

और ये भी जानती हो की तुम्हारे बिना ,

इक पल् भी नहीं काटना चैन से,

दिन ढलता नहीं रात गुज़रती नहीं ,

तुम्हारी राह देख देख नज़रें थकती नहीं,

जानता हूँ की तुम पास नहीं हो फिर भी ,

नज़रें हर दम बस तुम्हे ही ढूंढती हैं,

हर वक्त बस तुम्हारी कमी खलती है ,

इक टूटी हुई आस के सहारे साँस चलती है ,

जाने कब समझोगी तुम दर्द मेरा,

आ जाओ, तुम लौट के फिर आ जाओ,

देख लेना इस बार लौट के आओगी तो,

थाम लूँगा तुम्हे अपने आलिंगन में,

बाँध लूँगा तुम्हें प्यार के बंधन से,

और तुम्हें फिर कहीं जाने नहीं दूँगा ।

Saturday, September 5, 2009

कुछ कहना चाहता हूँ


न रहो मुझसे दूर अब तुम एक पल् के लिए भी ,


पास आओ मेरे, की मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ ,


मेरी आंखों में हैं , सोते जागते बस ख्वाब तुम्हारे,


मैं भी तुम्हारी नज़रों में हर दम रहना चाहता हूँ


पास आओ मेरे, की मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ ,


आ के बाँट लो तुम मेरी हर नन्ही सी खुशी भी ,


मैं तुम्हारा हर छोटा सा गम भी सहना चाहता हूँ,


पास आओ मेरे, की मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ ,


भर जाएगा तुम्हारा आँचल दुनिया भर की खुशियों से ,


बन कर आखरी आंसू मैं तुम्हारी आँख से बहना चाहता हूँ ,


पास आओ मेरे, की मैं तुमसे कुछ कहना चाहत हूँ


तोड़ कर सारे बन्धनों को तुम चली आओ मेरे पास ,


मैं अब उम्र भर बस तुम्हारे ही साथ रहना चाहता हूँ


पास आओ मेरे, की मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ ,

Friday, July 24, 2009

ले दूँ तुम्हारा नाम ?










पूछे कोई की वो
कौन है, जिसे मैं
बार बार याद करता हूँ ,
पूछे कोई की वो
कौन है , जिसका ख्याल
मेरे होटों पे मुस्कराहट छोड़ जाता है,
पूछे कोई की वो
कौन है, जिसकी तस्वीर
मैं आँखें मूंद कर देखता हूँ,
पूछे कोई की वो
कौन है, जिसका
मुझे इंतज़ार रहता है,

तुम ही कहो अब,
ले दूँ तुम्हारा नाम, या
चुप रहूँ अभी ,
और अगर किसी दिन,
खोल दिया राज़ नज़रों ने
तो क्या होगा?


Wednesday, July 22, 2009

अब लौट के आ जाओ


तुम क्या गई की पीछे पीछे ,
मेरी हँसी भी चल पड़ी ,
और कुछ दिन जब , मेरी हँसी
घर ना लौटी तो, उसे ढूँढने
मेरी मुस्कराहट भी चल पड़ी ,
तुम क्या गई की पीछे पीछे,
मेरे अल्फाज़ भी चल पड़े , और
कुछ दिन जब मेरे अल्फाज़ भी
घर ना लौटे तो, उन्हें ढूँढने
मेरी आवाज़ चल पड़ी,
सदीआं बीत गई हैं ,
ना तुम लौटी हो,
न मेरी हँसी ही लौटी है,
मुस्कराहट का भी कोई पता नही,
इतना शुक्र है
तुम्हारी ताज़ा यादों का,
मेरी आवाज़ लौट आई है,
मेरे अल्फाज़ भी लौट आए हैं ,
ताकि जो भी मिले,
उस से पूछूं तुम्हारा पता ,
फिर ढूंढूं तुम्हें,
हर गली में, हर मोढ़ पर,
जानाता हूँ की तुम लौट आओगी तो,
लौट आएगी मेरी हँसी,
और लौट आएगी मेरी मुस्कराहट भी,
ना जाने कितने दिन ये आँखें तरसेंगी,
और ना जाने,
कितने दिन ये आँखें बरसेंगी,
अब लौट के आ जाओ ,
लौट के आ भी जाओ.


Thursday, July 2, 2009

मिलन रेल की पत्त्रिओं का


रेल का सफर जब
अपने मुकाम पर पहुँचा तो
मैं रेल की दोनों पत्त्रिओं
के बीचों बीच आ गया ,
कुछ देर चलता रहा , चलता रहा
फिर गौर से देखा मैंने ,
वो दूर ........ बहुत दूर
जहाँ आसमान धरती से मिल रहा है
वहीं जहाँ दोनों दिशाएँ भी
आपस में मिल रही हैं ,
वहीं पर दोनों
रेल की पत्रिआं भी तो मिल रही हैं।


तुम भी पास आओ और देखो ,
बस यहीं से देखना
रेल की दोनों पत्त्रिओं का मिलन ।

Thursday, June 25, 2009

Rail ki do pattrian


Kal maine rail se safar karte huey dekhi
rail ki do pattrian ,
ek iss taraf aur doosri uss taraf,
aur kuch kuch doori par,
ateet ki yaadon aur raazon
se judi huee,
magar phir bhi door door,
ek doosre se alag alag,
chhote chhote pathron se
dono aur se dabi huee,
aur ooper se,
din bhar tez raftaar bhari bharkam
gaadian guzarti huee,
Ye do rail ki pattrian,
yahaan se vahaan tak,
jaane kahan se kahaan tak,
ye bhi pata nahin ki ,
yahin ruki hain ya
kahin jaa rahi hain.
Jaane ek doosre se
baat bhi karti hain ke nahin....
koi kuch kahe bhi to
gaadion ke pahiyon ke
shore o gul mein hi
dab kar reh jaati hongi
dil ki baaten.
Aur kabhi kabhi,
koi teesri patri aa kar
kabhi iss patri se to
kabhi uss patri se mil jaati hai,
shayad usse apne saathi se
juda karne ki koshish main..
phir laachar ho kar kuch der baad
khud hi saath chhod jaati hain,
aur reh jaati hain vahi
rail ki do pattrian..

Par ek baat dekh raha hoon,
ke rail ki ye do pattrian
hain dono saath saath.
Saath saath.
lagta hai vahaan door ja kar

dono pattrian mil rahi hain,

Dekh bhi raha hoon,
aur jaanta bhi hoon ke,
ye do rail ki pattrian
kabhi mil nahin paengi......

Tum bhi kabhi
Rail se safar karo to
Mehsoos karma,
Hum tum bhi to
Rail ki in do pattriaon
ki tarah hi to hain,
main iss taraf aur tum
uss taraf ,
ek doosre se alag alag,
beech beech mein
ek doosre ke ateet ke
raazon se jude huey,
beetey dino ki yaaden,
bhavishya ki chintaaon
ke pathron se dabbe huey..
aur uooper se vartmaan ke

apne apne kartavyon ke
bhoj talle dabe hue,
hum tum bhi kahan mil paate hain..
tum bhi kahan baat karti ho mujh se
main bhi kahan kehta hun kuch tumse se ,
kabhi bhoole bhatke
koi kuch kahe bhi to,
dunia ke shore o gul mein hi
dab kar reh jaati hain.
Dil ki baatein

Hum bhi to chal rahe hain
yahaan se vahaan tak,
jaane kahaan se kahaan tak…

Aur yeh bhi mehsoos karma ke
kabhi koi kabhi koi

kabhi mujhse, kabhi tumse

aa kar mil jaata hai,
hummen ek doosre se
juda karne ke liye..
Aur lachaar ho kar
khud hi saath chhod jaata hai..
aur reh jaate hain
hum dono
hum bhi kehne ko chal rahe hain
saath saath,

lagta hai vahaan door ja kar,

hum dono bhi mil jayenge,
par jaanti hun ke

mil nahin paaenge…..
hum bhi to hain in rail ki do pattrion ki tarah....…